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वचन कोश
यह पुदगल निज्जर की रीति । निश्चय नय जब आतम प्रीति ।। तजें जीव परबुद्धि प्रसंग । यह निज़र भावना सुरंग ।।४।।
दोहा सफल द्रव्य सिम लोक में, मुनि के पटतर दीन । लोग जुग सि सौं थापना, निश्चय भाव धरीन ।।४।।
चापाई पीर को सब पुकार साबित विचार जुर.पद ए निगोद हैं दोइ । पिंडरी नर्फ सात अवलोइ ||४|| छम्मा वंसा मेघा आंनि । अंजन परिठा मध्य हैं ठाम ।। मधवा सप्सम नकर्ष विचार । प्राय तानि तीस निषिधार ॥४५।। जंघस्थान परे थल चारि दीप नाग मो असुर कुमार ।। बसे भवनवासी तिहि ठोर । ऊपरि मध्य लोक की दोर ।।४।। उदर समान कह्यो भूचि लोक । अगनित द्वीप समुद्र को थीक ।। ज्यौं पंजरहें लंगराकार । यौही सो रहे सुरग विचार ।।४७।। प्रथम सौधर्म ईशान जु दोइ । सनतकुमार माहेन्द्र है जोइ ।। ब्रह्म ब्रह्मोत्तर दो अभिसम | लात्तव और कापिष्ट सु नाम ॥४८॥ शुक महाशुफ सर गेह । सतार महासतार गनेह ।। पानत प्रारणत ए सुरधाम । पारण अच्युत पोहस नाम ।।४६।। धक्ष स्थान है ग्रोचक तीन । प्रद्यो मध्य ऊरध परवीन । नदनकोत्तर कंठ स्थान । एक भनातरी तहां जान ।।५।। तापर पंचानोत्तर नाम । प्रहिमिंद्रनि के पांच विमान ।। सो कहियें सरवारथ सिद्धि । बबन ठोर जानियो प्रसिद्ध । मुक्ति स्थल ससाप्ट पर गनौं । लोकायाशा यहि तुम भणौं ।।१।। त्रिय वलेन घेवची केम । छालि लपेटयो तर वर जेम ।। घनाकार है सासु विसाल । रज्जू तीनसे पोर तेतास ॥५२॥