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वचन कोश
ए सब जीव द्रव्य के खेल
पुदगल सों नहीं दीसं मेल ॥
वल बीरजु सुख ज्ञान महंत
सहजानंद स्वभाव अनंत ||२२|| धरो ध्यान जोऊं ता रूप | सदा मकेलो विमल स्वरूप ॥
जहां डू जाकी होइ प्रभाव । एकतानु भावना कहा ||२३||
वोहा
अन्न अन्न सत्ता घरें, श्रन्न प्रन्न पर देश ||
अन्न अन्न तिथि मांडला, अन्न अन्न पर देश || २४||
चौपई
नित अन्य जीव सब काल । पुदगल अन्य परिग्रह बाल || संपे पुत्र कलित्र शरीर । कोइ न तेरो सुनि यस वीर ॥ २५ ॥ या दिन हंस यानी करें। संगी हूँ कोऊ न संग घरे ॥
जह सेवग साहिब नहीं मान । अनंतात भावना कहांन ॥ २६ ॥
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बोहा निर्मल मति जो जीव की, विमल रूप त्रियकाल 1
शुषि श्रंग जो देखियें, पुंज वरगना जाल ॥२७॥ चीपई
शुचि खानि कहियें यह देह । सासों जीव कहां तोहि नेह || रक्त पीरु मूत पुरीख । इनि सों भरी सदाई दीख ||२६|| हाड नाम केशनि के झुंड । यारों ने नर्क को कुंड ॥ या सों जीव रचे नहीं जहां | अशुचि मंग बखाने तहां ॥२६॥
बोहा
ज्यों सर्वाष नौका विषै, पावे चउदिशि नीर ॥
त्यो सत्तावन द्वार हूँ, होइ जु मानव भीर ||३०||
चौपई
जो परद्रव्य तनो है सार | राग द्वेषरू करण स्वभाव ||
बसु
मद औ संकल्प विकल्प | सकल कषाय ग्यान गुण भल्म ||३१||
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