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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
नाभिराय तब हुलस्यो चित्त | तरुण भए प्रभु परम पवित्र ॥ की व्याह सकल सुखरासि बंदी जन की पूर्व प्रास ॥ २८ ॥ से जगत जीव यह रीत | करें सफल हिरवे परि प्रीत || इह प्रकार विरध संसार होइ प्रवत्त लोकाचार ||२६||
तब प्रमुस्यो विनच मनुराम । तुमतो जगत पिता जिनराय || मादि पन्त विनु वरतो सदा । जनम मरण को दुख न कदा ॥३०॥ ओ मोहि दियो पिता पव ईस तो मम वचन सुनो जगदीस || पाणिमत करो भरि प्रीति । जगमें जो यह वादें रीति ||३१|| लोक बढत ने धर्म अधिकार यह प्रभु जू की है उपगार ॥
जो मम बच्चन न करि ह्रों कांन । पिता वचन की निश्चय हानि ||३२|| पुत्र सपूत कहावें तब पिता बच्चन प्रतिपाले जब ॥
तब प्रभु होनहार सब जान । वें कियो फिर बहु सनमान ||३३|| नाभि नरेन्द्र फूल बहु भई सकल नृपति के घर सुधि लई ।। कच्छ महाकच्छ ॐ भूप । तिनिके दुहिता जु अनूप ||३४|| कच्छ तनी नंदा पनि बाल । नमि कुमार बेटो गुणमाल ॥t जस्ववती महाछ की सुता । विनमि पुत्र सब गुण संजुता ||३५| वँ हैं प्रभु को ब्याही राय । प्रानंद मंगलाचार कराय || भोग विलास करत संतोष । तब सब भिराणी को कोष ||३६|| भरथराय प्रादि सो पूत । उपजे सुन्दर सुभग सपूत ॥ ब्राह्मी सुता पवित्र अवतार । पूर्व पुन्य लीयो जु विचार ।। ३७ ।। अब सुनि दुतिय रागनी बात । नंदाराणी परम विख्यात !! पुत्र जन्यों बाहुबलि नाम सुता सुन्दरी गुण अभिराम ॥ ३८ ॥ यह विधि बढ्यो परिग्रह घोर । एक तें एक प्रतापी जोर ।। खानारसि नगररी को भूप । नाम अंकपत्र कांम स्वरूप ॥२६॥ सेनापति बडो सब कहैं । लाम नाथ वंश वेदता बहें || प्रभु के भाइ चरण सिर नई द लहें मानंद अधिकाई ॥ ४० ॥ विनती करी जुगल करि जोरि । मसरा सरा नाथ हों मोरि ||
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