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वचन कोश
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मनन्तानन्त घोबीसी जानि । या लेणे परतक्ष प्रमाण ।। केवल बिना न जानी जाई । यात अनंतानंत कहाई॥५०॥
दोहा
जब जब होइ चतुर्थ में, सतज़ुग मठतालीस । गए पोमोसी सु होइ, सहा हुडामप्पिनि इस ।।५८ ऊण शलाका पुरुष, जहां दपं रूप पांखड । होई उपसर्ग जिनंद व... सीमाच विज :.' छहौं काल फिरिते रहें. ज्यौं अग्छ को हार । भरथ ऐरावत क्षेत्र में, जे घरनै दश सार ॥६॥
इति षटकाल वर्णनं ऋषभदेव गर्भ कल्याणक वर्णन
__ चौपई
प्रब सुनि तू फिरि उत्तपत्ति सिष्ट । उ था जुति जो कही वरिष्ट ।। तीजे काल अन्त मनु बृन्द । बौदही कुलकर नाभि नरिद 11211 मरदेव्या राणी को नाम । शीलवंत सब गुण अभिराम ।। पायु क्रोडी पूरब की दीस । काय धनक शत पंच पचीस ।।२।। प्रायुभूमि को साधे राज । सुख साता के सर्वे समाज । तीन ग्यांन संयुक्त नरिंद । सब जीव को मेटें बंद ॥३॥ निसि दिन धर्म नीति सौं काम । दुस्खी न दीसे काउ तिहि ठाम ।। ऐसी भांति काल बहु गयो । अवधि सुरपात चितितु भयो ।।४।। धनपति को लियौ तब बुलाइ । जिन प्रागमन कल्लो समझाइ ।। सो आयो चल पायं मझार । नगरी रचना रपी सवार ॥५॥ नब जोजन चतुरी निरमई । बारह जोजन लांबी ठई ।। सब के कनक मई प्रावास | रत्नजड़ित बहु यिधि परकाश ॥६॥ वन उपवन तहाँ रचे अनूप । घर घर कामिनि परम स्वरुप ।। पापी कुप सहाग अनंत । निर्मल अब कमल विकसंत ॥७॥