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बचन कौश
तीन पल्य की पूरी प्राय छह हजार धनक की काय || बेर प्रमाण आहार जु करें। सोल तीनि दिवस में लड़ें ॥७॥ पूरे देश विधि उत्तम दान । कल्पवृष्य सब के गृह जान ॥
सो तरु दश प्रकार वरनये । तिनि के नाम सुनी गुण जये || ५ ||
कल्प वृक्षों के नाम
चौपाई
तूरज मध्य विभूषा जानि । स्रग अरु ज्योति द्वीप गुण खांनि ॥ गृह भोजन भाजत अरु भास | सुनि अब इनको दान प्रकास ॥६॥ मध वृष्यमादिक दातार । तु देय वामित्र विचार || श्राभरण देइ विभूषा रूप सूर्य समान हरै तम जाल
स्रुग तरु देइ पुण्य विनु दूष ||१०|| । ज्योति वृष्य में सो गुणमाल ॥ दादीप तें जानि गृह् दाता गृह रुप बषांन ।।११।।
भोजन तरुवर भोजन त्यागि । भाजन पातर वृष्य सौलागि ३ | चसन सकल देइ वस्त्र उदार | करूपम ए दशा परकार ।।१२।। हि विधि सुष सौं काल बिताइ । श्राव जहाँ नो मास रहाई || नारी गर्न होइ तिहि सबै 1 पूरी होइ जुगल सह जनै ॥ १३॥ माता छींक पिता जंभाद । ततषिणवे बदल परजाइ || सकल शरीर जाइ पिरि ऐसें । हमें तें कपूर उड जैसे ॥ कर्म वेदनी को नहीं पीर प्रगती दाह नहीं करें शरीर || १४ | घे दोऊ मरि स्वर्ग प्रवतरे। जिनवाणी प्रकाश यों करें दीक शिशु अंगुठा रस पीय दिन उचास तरुण वपु की ||१५|| जनमत भया वह नव षांन | तरुण भये पति नारी जांन ॥
सर्ने सने बहु चीते काल । परिवसों दूजौ गुणमाल ||१६|| सुषमा काल वर्णन
प
सुषमा नाम ताको स्तुत हैं । जुगल जीव तामें हू रहें || कोराकोरी सागर तीनि । काल मर्यादा कही नवीन ||१७||
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