________________
६८
कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
बोहरा
जिनबर मुष उदभव प्रगट, श्रुत प्रगाध सिद्धांत || तिनसुनि बरनई, गण संत असंख्य अनंत ||१५||
इति असंख्यात अनंत रित भेद वर्णनं
योजन गरिणत भेद वरांन
चौपई
अब सुनि प्रालिका कथा | जिनवानी भाषी है जथा || राई ग्राठ तनों तिल एक। एक जत्र बसु तिल यह विवेक || १||
जब वसु उदरे उदर मिलाइ। सो तो श्रांगुल एक कहाई ॥ द्वादश आंगुल मामें कोइ । एक विलादि कहावे सो ||२|| जग्म विलादि जहाँ लौं दोर । कहिये हाथ एक सा ठोर ।। लहाण मारि को
ई हजार जब गनता जाइ। सो तो एक कौश ठहराइ || ३॥ चारि कोश जब एकतकरें। लाको लघु जोजन उच्चरें ||
जब गरि जोजन सो पंच जोजन महा एक गरिए संच ॥४॥
इति जोजन गणित मेव
पल्या भेद वर्णन
चौप
पलि आवकी गरिये जदा । पनि गरता लघु जोजन तदा । थाडो ठाडो जोजन एक गहरी तितनों है विवेक ||१|| भोग भूमि मेंढा के बाल । जो दिन सात ना होइ बाल । साइ षंडु अभागी करे। रौंदि शविता कूपहि भरें ||२|| चीरथ सुर गंगापूर | करि पास ताक चकचूर || एक सप्त वर्ष वौति जब जाइ । तहां तें एक खंड तिसराइ ॥३॥