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बचन कोश
एक रहे जब' पाछै फिर । ताहि प्रथम गरताले भरें ।। फिरि पूट ता टीप समान । गरता एक पर्ने घरि ज्यान 11६||
। र सो कार उभा लोप समुद्र एक हारतु जाय ।। एक रहे फिर ताह लाइ । पहिले गरता मध्य भराइ ||७|| जब वह भरे करत इह रीति । लै उगइ सुनौ रे मीत ।। एक दुतीय गरता कर सोइ । पहिले कल्पित गरत समोइ ।।८।। करि एकत्र जु डारतु जाइ । नापत नाषत एक रहा ।। करि गरता गिरि ताहि समान । एक बचे पहिले धरि पान ||६|| अनुक्रम फिरि गरता यह भरे । सब ले एक दुजे में करै ।। सो सब ले कल्पित सों भेल । द्वीप समुद्र प्राप्त दाने लेल ।।१०।। फिरि पहिले के भरतो जाइ । पूरा भए तो उनकाय ।। एक एक दूजे में चलें। तब वह रीति दूसरो सले ।।११।। एक तीसरे सर्व जु गोद ! कल्पित ले फिरि करें विनोद ।। बह सब घटि जन एक रहत । फिरि दूनो गरता भेलंत ।।१२।। पूर्व गीति जब जब वह भरै । तब तब एक तीसरी करें ।। बह विधि भर तीसरी जब । चोयो एक जु डार तब ।।१३।। पौर सकल कर ले पुचकाय । कल्पित गर तासौं जुर लाइ ।। करतु चल पहिली की रीति । एक रहैं ताजै भरि मीत ।।१४11 जब जब तीजो भरतो जाइ । एक एक सोथो जु भराइ ।। अंसी रीति चतुर्धम भरे 1 पूर्ग भए सकल उद्धरे ।।१५।। जब जब जहां छेहली सरसो नाइ । स्वयंभू रमण समुद्र कहाइ 11 असंख्यात याही को नाम । मेरु त अर्द्ध रजू सो ठाम ।।१६।। मध्य लोक को अंतर जोइ । बात वलय वेश्यों अब सोय ।। पात भसंध्या प्रौर मसंध्यात । नाम अनंत ही विख्यात ॥१७॥