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कविवर बुलाखीचन्द, बाकीदास एवं हेमराज
ज्ञान पूस बदि तुज की, प्रफट भयो संसार ॥ फागुण सुदि की पंचमी, लयो मुक्ति पद पार ।।७।।
इति मल्सिनाय वर्णन
२०. मुनि सुनतनाव स्तवन
दोहा
बरष लाष षठ बीत त, मुनिसुयत परगास । सुमतिराय पदमावती, राजाही में वास ॥१॥
चौपई
करम चिल दीप निसान । तीस हजार वरष लौ जान ।। श्रीस मार जिन रा. हरि कहेव ।।२।। तीन जनम ते संसय गई । चंपक तरुवर धीष्या लई ॥ विश्वसेन मिथिलापुर घनी । दान थियो करि विनती घनी ॥३॥ दूज दिन स्वामी बलवीर । सब तजि लीनों उत्तम पोर ।। राजरिदि तजि रवि के अंत । भए केवली श्री प्ररहंत ॥४॥ मष्टावश गणधर मंडली । द्वादश सभा मधि कर रली ।। समोसरण धनपति तम रच्यो । म जुगम जोजन को पचौ ॥१॥ विनु बैठे कियौ प्रातमकाष । गिरि सम्मेद पर मुक्ति समाज ।। सावन बदि दुतिया गुण सनी । गर्भ कल्यानक रचना बनी ।।६॥
दोहा बशाय बदि दशमी विमल, अनमा तप परषान ।।
शाख बदि नौमी कहीं उपज्यो केवलशान || फागुण बदि की द्वादशी पंचम गति के ईश। करे महोछर भगति वर, नर तिरयंच सुरीस ॥८॥ इसि मुनिसुव्रत वर्णन