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कविवर जुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
चपई
शिवा देवी राणी जिनमात । समुद्र विजय राजा गणितात " लांग संघ सहस वर्ष श्राव । स्याम वरा दश धनुक उचाव म ग्यारह गणधर सेवा रहें । समकित जनम दशक तं कहें ॥ विवाह समय छोड़ थी संसार मोडासिंगी तरु ढलें तप घार ||३|० वीरपुरी राजा नरवत दई बरी गोक्षीर पति ॥
केवल अरुन उद संचरौ । जोजन देढ़ समा थल कधी ॥४॥ पद्मासन प्रभु जोग विचार मुक्ति को गिरनार ॥ छठि उच्चारी कालिंग मास । जिनवर भयो गर्भ निवास ॥* बोहा
सुकल पक्ष सावनी, तिथि षष्ठी शुभवार |
जन्म कल्याणक और तथ, इन्द्रनि कीय विचार ||९॥
कासी सुदि एकादशी, प्रगटधी ज्ञान महंत ।
सुदिप्राषाढ़ की अष्टमी मुक्ति गए भरत ॥१७॥ इति मेमिनाथ वर्णनं
२३. पार्श्वनाथ स्तवन
दोहा
वरष पांच गत गये, जगमें कियो प्रकाश /
नागराव भासन दिमें, पायहरण जिनपासि ॥ ११३ चौपई
प्रश्नसैन वानारसी गांम । वामा जिनमाता को नाम ॥
नो हाथ करि काय विशेष । एक शत वरष भावको लैश ||२|| उग्रवंश तनु दुति है नोल ग्यारह भवतें साध्यो शील ॥ घरची कुमारें दीक्षा रुप तरबर तक परम अनूप ॥१३॥ दाषपुर घनदस नरेश । घोर खरी दोन्ही परमेश ॥
निश के समें पंचम ग्यानं । समोझरण सदर जोजन मौन ||४|