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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकोदास एवं हेमराज पूस बदी एकादशी, केवल ज्ञान उद्यीत । सुरगी सब मिलि पद नमै, बिमल प्रातमा ज्योति ।। ८ ॥
इतिचन्नप्रभ वर्णन ६. पुष्पदन्त स्तवन
सोरठा सलितापति सब कोरि, अनुकम्में जब खिरि गए । भए प्रतापी जोर, पुष्पदन्त पुहमी प्रकट ।। १ ।।
चौपई काकंदी जनम जिनराय । सुग्रीव पिता श्री रामा माइ ।। लांछण मगर करें पदसेव । चन्द्राकृत निम्मल वपु देव ।। २ ॥ ' लख पूरब वरणी प्राव । धनक एक सो पुदगल भाव।। बड़ो वंश मुमि पर इशाक । नोन भातरि प्रभु नाक : सूरमित्र चित्र हर राइ। प्रमुकौं गोरस चरी पाहार ॥ वें दिन बीत पायो पाहार । तप लीयो जहाँ मल्लिका झार ॥ ४ ॥ षड भसी गणधर मंडली। झेलें विश्व धुनि उछली ।। नप पदवी को साघि विचारि । केवल प्रगयो सांझी बार ॥ ५ ॥ समोसरण वसु जोजन जानि । रत्नजटित अरु कंचन खानि ।। पुरुषाकार जोग अभ्यास । गिरि सम्मेदपर मोक्ष प्रवास ।। ६ ।।
दोहा फागुण यदि नौमी गरभ, जनम पूस सुदि एक । तप भादी सुदी अष्टमी, इह जिन वचन विवेक ।। ७ ।। प्रापहन सुदि परिवा दिवस, भई शान की रिद्धि । कातिग सुदि तिथि दंज कौं, भए जिनेश्वर सिद्ध ।। ८ ॥
इति पुष्पदन्त वर्णन
१०. शीतलनाथ स्तबन .
दोहा नौ करोरि सागर गए, मिटे दुरति भाताप । शीतल पदवी को धरै, शीतलनाथ प्रताप ॥१॥