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सविधर बुलाखीचन्द
चौपई भागलपुर हरष नप तात। मंदाराणी श्रीजिनमात । माछरप श्रीवृष्य हिमवंत देह । कुल इक्षाक सों कीनो नेह ॥ २॥ प्राव एक लाख पुरष को मणी । न पनुक काय प्रमु तनी । इक्कासी गणभर धुण कहै । तीनि जनम थे प्रमु शुधि लहै ।। ३ ।। चीत जब निस वासर । नय? र " पुग्न बस्सु राजा सिवपुरी ग्राम ! दान अधीम भयो अभिराम ॥४॥ वृष्य पलास मुभता शुचि देषि । तातर धर्मो दिगम्बर भेष । राज करत समकित उद्दीत । शति रिपु अंत ज्ञान को ज्योति ॥ ५ ॥ समोसरा देवनि करि बन्यो । जोजन सप्त अद्ध को गन्यौ । भोग पर्यो प्रभु कामोरसम 1 गिरि सम्मेदि में गए शिवमाग ॥ ६ ॥
योहा चैत बदी शिथि अष्टमी, गर्ने महोत्सव माघ । माष बदि तिथि द्वादशी, जनम शान कल्यारम ॥ ७ ॥ स्वार शुदि की अष्टमी, पर्यो दिगम्बर भेष । पूस बदि मौदशि विनां, मुक्ति मिला पर रेषि ।। ८ ।। एक लाष घट लाष सत, सागर अंतर जानि । या मै मछुक पदाइयें तब पूरी परमान ।। ॥
इति शीतलनाथ वर्णन
११. श्रेयान्सनाथ स्तवन
चौपई लष निनान न बीस हजार । इतने वरष दीजिये डारि ।। इतनी काल उल्लिघि जब गयो । तब थे यांस को प्रावन भयो । सिंधपुरी रागा विमल । बिमला राणी बहु गुरु प्रमल ॥ लांदन मैडो कंचन घररए । गणभर सत्तोसर सो सरण ।।२।। लाष पूरब को .......... | प्राव थी जिनवर की नानि । पसी धनुक की कैची काइ । तीनि जनमथै घरम सुहाए ।।३।। इक्षाफ वंस कुल दीपक भयो । यो दुष दिन परि लयो ।