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वचन- कोश
स शुटि चौदशि विमल, शुकूल ध्यान भयौ
घरि ईस |
कल्याणक पंचमी, सिद्ध भए जगदीश ॥ ८ ॥
इति प्रभिनन्दन बरनं
५. सुमतिनाथ स्तवन
बोहरा
लाख करोर नो,
वारधि सुमतिनाथ श्रावन भयो,
चौपाई
६. पद्मप्रभु स्तथन
तासु घटे परंजत ।
प्रतिबोधन जिन संत ।। १ ।।
मेघराय कौशल्या घनी । श्रीजिन माइ मंगला गणी ॥
वकचाकार ध्वजा फरहरें। राजनीति त्रिभुवन की घरं ॥ २ ॥ निर्मलकुल इक्षाक विचार । तीनि जनम थैं करी सम्हारि ॥ aj देह सौव भरत । भोजन दो६ दिवस परजंत || ३ ॥ पद्मदत्त विजयापुर ईश । घट्यो क्षीर भाहार जगदीश ॥ प्रियंगु वृक्ष उत्तम अवलोय । प्रभु को तहां तपोधन होइ ॥ ४ ॥ प्राव वबी पूरब लख चाल । सत्तीत्तर शत गणधर जाल ।। धनक तीन से जिन बलबीर । दिन के प्रस्त ज्ञान की भोर ।। ५ ।। समोसर जोजन दश जानि । द्वादश कोठे मध्य षषांन ॥ कायोत्सर्ग जोग घरि ध्यान | भयो सम्मेदगिरि पर निर्माण ।। ६ ।। दोहरा
ईंज अरु नोमी श्रावण दिवस, शुक्ल पक्ष वैशाष ।
गर्म जन्म प्रभु तप कहारे, श्रीजिन श्रागम भाष ॥ ७ ॥
चैत्र शुद्धी एकादशी, ता दिन तप निर्वान | भषि चैत यदि एकादशी, उपज्यो केवल ज्ञान ॥ ८ ॥ इति सुमतिनाथ वर्णनं
दोहरा
४
नव करोरि सागर
गए, उपजे पद्म जिनंद :
भविजन सब सुकृत भए कटे कर्म के फंद ।। १ ।।