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वचन कोश
शाक
मेनु पीर पीयतै सुनि देह ब्रह्मदत्त नृप बिनिला मेह ।। ३11 वृश्च ततपुलियो रत्नत्रय व्रत निर्मल किय समोसरस्य श्री चितचर वनों । नौजन साढ़े ग्यारह मम ॥४॥ बरननि सकों मप मोहि ज्ञांन सांझ स भयो केबलय्यांन ॥ बहुविवि राज विभृति बिलास । यहि स्वानि पाई सुख रात्रि | 12.20 सोरठा
ठाढे जोगाभ्यास, कियो सिद्ध सम्मेद 1
पहुँचे अविकल बास, सकल करम वन दद्दन के 11६11 दोहरा
जेष्ट यदि मावस गरम, जनम माघ सुदि नौमि चैत्र सुदिप जु तप, ध्यान भनि कर्म होमि ॥७ माघ महीना शुकल पक्ष तिथि को ज्ञान । स क्यारि प्रतिपदा, ता दिन प्रभु निर्वाण ॥ इति अजितनाथ बन
३. संभवनाथ स्तवन
चौप
तोस कोरि लाब निधिवार। बीते प्रभु संभव अवतार 11 पिता जितारस सेन्या माद: सावित्री नमरी के राइ ||१|| सुरंग पवन यति ध्वज श्राकार व शरीर हेम उनिहार ॥ सादि लाष पूरव तिथि जान । धनुक चारिसे काम प्रभार || २ || कुल इलाक में पूरचंद | पंचोत्तरसो बरावर वृद
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सीनि भवांतर से सुधि भई । भावरि दिवस दौड़ में गई ||३|| सूरदत्त सावित्री घनी सा घर गोपय की विधि बनी ॥ सरबर सुभग खालि जिहि नाम । तातर तपु लीयो मभिराम ॥ * ॥
धनी ॥1
प्राक केवल रिद्धि बनी | ठाडे जोग मुक्ति राजद्धिस्थायें लक्ष्य पार भयों सम्मेद गिरि जय जयकार |
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