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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज
श्री जिन महावीर तीर्थेश, पंचम गति को कीयो प्रवेश ।
मुक्ति सिद्ध सिला पर सिद्ध सरूप, परमातम भए चिदरुप ।।६।। महावीर संघ के न गणों के मस पूरा प :
इसके पश्चात् कवि ने काष्ठा संघ की उत्पत्ति की कथा लिखी है जो ४० दोहा चौपाई छन्दों में पूर्ण होती है । लोहाचार्य वर्णन
प्राचार्य गुप्ता गुप्त के मद्रबाहु शिष्य थे। उनके पट्ट शिष्य माघनन्दि मुनि थे। प्राचार्य कुन्दकुन्द उनके पट्ट शिष्य थे । तत्वार्थ सूत्र के स्थपिता उमास्वाति प्राचार्य कुन्दकुन्द के शिष्य थे । उमास्वाति के पट्ट शिष्य थे लोहाचार्य जिन्होंने काष्टासंघ की स्थापना की थी । लोहाचार्य विद्या के भण्डार एवं सरस्वती के साक्षात् अवतार थे। उनके एक बार शरीर में ऐसा रोग हो गया कि मरने की स्थिति प्रा गयी । वायु पित्त एवं कफ तीनों का जोर हो गया । तब उनके उसी भव के श्री गुरु स्नेहवा वहाँ पाये । उन्होंने उनको सन्याल (समाधि परम्प) दे दिया क्योंकि जीने की तनिक भी प्राशा नहीं रहीं थी। लेकिन शारीर की व्याधियां स्वत: ही धीरे धीरे कम होने लगी और वे स्वस्थ हो गये । भूख प्यास लगने लगी। तब उन्होंने अपने गा से विशेष माशा मांगी। श्री गुरु ने कहा कि
श्री गुरु कहें न प्राम्या पान, करि सन्यास मरण बुधियान ।
ज्यो मागे परमादी जीव, प्रतिपालें जो व्रत जोग सदीव ।।२३।। लोहाचार्य ने गुरु की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और अन्न जल ग्रहण कर लिया । गुरु ने उनको अपने गच्छ से निकाल दिया और दूसरे किसी साधु को पट्टाधीन बना दिया । लोहाचार्य ने गुरु के इस विरोध पर गम्भीरता पूर्वक चिन्तन किया और अन्त में गुरु को छोड़कर अन्यत्र बिहार कर दिया। उस समय विक्रम संवत सात सौ ७६० था ।
१. जो हो इनिसों कही प्रकार, पूरी करी जाइ चोमास ।
मति उर यो व्रत भंग जु भयो, तुम प्रमु के हित हो चित दियो ॥१३॥ २ लोहावारज सोचि विचार, गुरु तजि कीयो देश विहार ।
संवत श्रेपन सात से सात, विश्राम राय सनो विख्यात ॥ २५|१४४।।