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कविवर बुलाखीचन्द
पश्चात् किसी ने खेती करना प्रारम्भ कर दिया तथा किसी ने चाकरी नौकरी करली। इस प्रकार बहुत समय व्यतीत हो गया और वहां जैनधर्म का प्रचलन बन्द हो गया |
२४ वें तीर्थंकर महावीर को जब कैवल्य हुआ तो इन्द्र ने समवसरण की रचना की । प्रचंड पुण्य के धारी सुर असुरों ने समवसरण को श्रार्यखंड में घुमाया श्रौर एक बार भगवान महावीर का समवसरण जैसलमेर के वन में भा गया। समवसरण के प्रभाव से सब ऋतुनों में फूल खिल गये । वनमाली ने राजा के पास जाकर तीर्थंकर मानो के केका समाचार दिया । तत्काल राजा भी अत्यधिक प्रसन्नतापूर्वक महावीर की बन्दना के लिए अपने परिवार एवं नगरवासियों के साथ बल दिया
राजा ने विनयपूर्वक महावीर को वन्दना को तथा मनुष्यों के प्रकोष्ठ में जाकर बैठ गया । उराने महावीर भगवान से निवेदन किया कि " हमारे देश में एक बात प्रसिद्ध है कि "हम पर देवताओं की कृपा है तब फिर उनके हाथ से राज्य कैसे निकल गया" । इसका उत्तर महावीर के प्रमुख शिष्य ( गणधर ) गौतम स्वामी ने दिया । उन्होंने कहा कि उनके पूर्वजों ने जैनधर्म छोड़ दिया मा इसलिए यह सब कुछ हुआ । यदि फिर वे जैनधर्म स्वीकार करलें तो उनके संकट दूर हो सकते हैं । गौतम गणधर की वाणी सुनकर वहाँ उपस्थित सभी चार हजार स्त्री पुरुषों ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया सबने मिलकर नियम किया कि वे भविष्य में जैनधर्म का
१. महावीर प्रभु प्रकयौ ज्ञान, रची सभा सब अमरनि श्रान ॥७॥ सकल सुरासुर पून्य प्रचंड, ताहि ले फिरें भारज खंड
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खंड सकल परयाँ चौफेर चलि प्राये जहाँ अंसलमेर || 5 ||
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२. सुनि राजा चल्यो वंदन है, मान रहित पुरलोक समेत ।
प्रथम नमें श्री जिमवर राइ, फुनि नर कोठें बैठे जाइ ॥ १० ॥ पुत श्री प्रभु को बात, ओ ए यात वंश विख्यात । रहों कृपा करि सुर महाराज, छुट्यों क्यों हमतें भुवराज ॥। ११ ॥