Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
View full book text
________________
[प्रार्थना मङ्गल-सूत्र
(१७) - भई सय जगुज्जोयगस्त, भई जिणस्स धीरस्स।
न०,३ टीका-जिन्होने तीनो लोक में अशाति मिटाकर शाति की, अज्ञान का नाग कर ज्ञान का प्रकाश किया, मिथ्यात्व के स्थान पर सम्यक्त्व धर्म की स्थापना की, हिंसा, झूठ, भोग, तृप्णा आदि दुर्गुणों के स्थान पर अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अनासक्ति आदि रूप सयम मार्ग को प्रदर्शित किया, ऐसे श्री जिनेन्द्र देव भगवान महावीर स्वामी की जय हो, आपका महान् कल्याणकारी शासन सदैव अजेय हो ।
(१८) संघ नगर भई, ते॥ अखंड चारित्त पागारा।
नं०, ४ टीका-हे चतुर्विध संघ रूप रमणीय नगर | आप कल्याण रूप है । आपकी महती महिमा है । आप अवर्णनीय यशवाले है । आपके चारों ओर चारित्ररूप-सयम रूप अखण्ड प्रकोट है। यही अचल यीर अभेद्य गढ़ है।
(१९) संजम-तव-तुंवारयस्स, नमो सम्मत्त पारियल्लस्स।
नं०, ५ , टीका-विषय और कपाय को काटने मे जिसके पास सयम और तप रूपी पवित्र चक्रायुध है, सम्यक्त्व रूपी सुन्दर धारा है, ऐसे अनन्त शक्ति सम्पन्न थी सघ को नमस्कार हो ।