Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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है... २ई अन:- राण्डी
पादपोला, जयपूरचारित्र-सूत्र
- एगे चरित्ते । ।
ठाणा०, १ ला, ठा, ४४ ____टीका-विशुद्ध आत्मा का विशुद्ध चारित्र ही एक अखड और वास्तविक चारित्र है । वही परिपूर्ण चारित्र है। ___संसार में विभिन्न आत्माओ का जो विभिन्न आचरण रूप चारित्र पाया जाता है, उसका मूल कारण कषाय, विषय, वासना, विकार और शुद्धि की अल्पाधिकता समझनी चाहिये।
सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो मल मे जो आदर्श चारित्र है, वही एक और अखड है । उसी मे कर्म-भेद से नाना भेद हुआ करते है।
चरित्तण निगिण्हाह।
उ०, २८, ३५ टीका–सम्यक् चारित्र के द्वारा ही सब प्रकार के आश्रव का विरोध किया जा सकता है।
चारित्र के अभाव में आश्रव नही रोका जा सकता है।
विज्जा-चरणं पमोक्खं ।
- सू०, १२, ११ - टीका-विज्जा यानी ज्ञान और चरणं यानी क्रिया, इन दोनों से ही मोक्ष मिलता है । सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । दोनो में से एक के भी अभाव में मोक्ष नहीं मिल सकता है। दोनों का साथ-साथ होना आवश्यक है। ज्ञान