Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
View full book text
________________
४६]
.[ मोक्ष-सूत्र
— टीका-मोक्ष प्राप्त करने के बाद मुक्त आत्माओको फिर जन्ममरण नही करना पडता है, क्योकि जन्म-मरण के कारण जो कर्म है, उनका तो आत्यतिक क्षय हो चुका है, अतएव मोक्ष अवस्था शाश्वत है, नित्य है, अक्षय है, अव्यावाध है । मुक्त. जीव सुखी है और अनन्त सुखको अनुभव करते हुए स्थित है । अनन्तकाल तक उनकी एक सी ही स्थिति रहती है।
(१४ ) - जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अणंता।
उव०, सिद्ध, ९ टीका-सिद्ध आत्माएँ, मुक्त आत्माएँ अरूपी होती है, केवल अनन्त शक्तियो का पुञ्ज और अरूपी सत्ता मात्र अवस्था होती है। जहाँ एक सिद्ध आत्मा है, वहाँ अनन्त सिद्ध आत्माएं भी है । अनतानत सिद्ध आत्माएँ परस्पर में स्वतन्त्र अस्तित्वशील होती हुई भीज्योतिके समान-प्रकाशके समान परस्परमे निराबाध रूप से मिली हुई होकर सिद्ध स्थानमें स्थित है । जहाँ एक सिद्ध है, वहाँ अनेक सिद्ध है, और जहाँ अनेक सिद्ध है, वहाँ एक सिद्ध है, किन्तु प्रत्येक का स्वतत्र अस्तित्व है।
(१५) अन्नाण मोहस्स विवज्जणाए, एगन्त सोक्खं समुवेइ मोक्खं ।
उ०, ३२, २ टीका अज्ञान और मोहको छोड़नेसे, सम्यक् ज्ञान और वीतरागता प्रकट करने से एकान्त सुख रूप मोक्षकी प्राप्ति होती है। शाश्वत्, अक्षय, नित्य, निरावाध और अनन्त सुखकी प्राप्ति होती है।