Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[व्याख्या कोष
ऐसे दृव्य कुल मिला कर सारे ब्रह्माड में केवल ६ ही है, न अधिक है और न्न कम है। पाच अरूपी है और केवल एक ही रुपी है । वे छ. इस प्रकार है -१ जीवास्तिकाय, २ धर्मास्तिकाय, ३ अधर्मास्तिकाय ४ पुद्गलास्तिकाय, ५ आकाशास्तिकाय और ६ काल ।
७-द्रव्य-आश्रव कर्मों का आत्मा के साथ दूध-पानी की तरह मिलने के लिये आत्मा की ओर आकर्षित होना ही आश्रव हैं। यह आश्रव दो प्रकार का है - १ भाव-आश्रव, २ दृव्य आश्रव। क्रोध आदि १६ कपाय और रति अरति आदि ९ नो कपाय-ये २५ तो भाव-आश्रव है, इन्ही भाव-आश्रवो के कारण जो रूपी, अति सूक्ष्म से अति सूक्ष्म पुद्गल-परमाणु आत्मा के साथ सम्मिलित होने के लिये बाते है, वे ही परमाणु द्रव्य-आश्रव कहलाते हैं। इन्हा व्य-आश्रव रूप परमाणुओ में भाव-आश्रव के अनुसार सुख-दुख देने की शक्ति तथा आत्मा के साथ अमुक समय तक रहकर गुणो को ढंक रखने की शक्ति पैदा हुमा करती है ।
८-द्रव्य-शाति
जो गान्ति वाह्य कारणो पर निर्भर रहती है, जो अस्थायी होती है और जिसका सम्बन्ध आत्मा के गुणो के साथ नही रह कर केवल पुद्गलो के साथ ही रहे, भौतिक-सुखो के साथ ही जिसका सम्बन्ध रहे, वह व्य शान्ति है।
९-द्वेप
अप्रिय और अरुचि वाले पदार्थो के प्रति क्रोध होना, नफरत होना, धिक्कार बुद्धि होना, अमान्य वुद्धि होना ही द्वेप है।
ध १--ध्यान ___ मन, वचन और काया की प्रवृत्तियो को नियन्त्रण करके, काबू में ले करके, किसी एक वस्तु पर उनको जमाना, किसी एक पदार्थ पर उन्हे स्थिर करना ध्यान है । ध्यान दो प्रकार का है -~-१ अशुभ ध्यान