Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi

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Page 523
________________ व्याख्या कोष ] ४५ का संयम क्षायिक वीतराग सयम है। वीतराग-सयम का ही दूसरा नाम “यथाख्यात चारित्र" है । १५-वृत्ति व्यवहार अथवा स्वभाव । १६-वैतरणी नदी नरक से संबधित नदी; जिसके लिये उल्लेख है कि, जिसमें खून, पोल हड्डी, मास आदि दुर्गधित और बीभत्स पदाथ ही भरे पड़े हैं, जिसके जलजार प्राणी बहुत ही तीक्ष्ण पीड़ा पहुचाने वाले हैं ! और जिसको पार करते समय पापी जीव को नाना विधि घोर कष्ट एव तीक्ष्ण पीडाएँ सहन करनी पढ़ती है। १७~-वेदनीय-कर्म जिस कर्म के कारण से ससार में जीव को सुख-अनुभव करने का अथवा दुख-अनुभव करने का प्रसग प्राप्त हो, वह वेदनीय कर्म है । इसके दो भेद है, १ साता वेदनीय और २ असाता वेदनीय । १८-वैभव __ सभी प्रकार की विशाल और विस्तृत पैमाने पर सासारिक सुख-सामग्री घन, मकान, यश आदि वैभव के ही अन्तर्गत है । १-शब्द __ कान इन्दिय का विषय है, यह शुभ और अशुभ दो प्रकार का होता है। यह पौद्गलिक है, रूपी है, अनित्य है । क्षण भर में संपूर्ण लोक में फैल जाने की शक्ति रखने वाला है । - - - - - - - २-श्रद्धा ___ "विश्वास" के अर्थ में प्रयुक्त होता है । सम्यक् दर्शन और अदाका एक ही अर्थ होता है। "आत्मा, ईश्वर, पाप, पुण्य" आदि मूलभूत आस्तिक सिद्धान्तो पर पूर्ण विश्वास करना श्रद्धा है। . . .

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