Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi

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Page 535
________________ व्याख्या कोष ] [४६९ शरीर और जीभ वाले जीव दो इन्दिय जीव है, जैसे केचुया, जोक और . शख आदि । शरीर, जीभ और नाक वाले जीव तीन इन्दिय जीव है, जैसे कि चींटी, खटमल, जूं आदि । शरीर, जीभ, नाक और आँख वाले जीव चार इन्दूिय है, जैसे कि विच्छू, भौरा, मक्खी, मच्छर आदि । पचेन्दिय जीव दो प्रकार के होते है, एक तो मन वाले; जो कि सज्ञी कहलाते है और दूसरे विना मन वाले, जो कि असज्ञी कहलाते हैं। पचेन्दिय जीव के शरीर, जीभ, नाक, आख और कान-ये पांचो इन्द्रियाँ होती है। संज्ञी जीवो में नारकीय जीव, देवता, मनुष्य, और पशु पक्षी, तथा जलचर पंचेन्द्रिय जीव माने जाते है । ज्ञ १-ज्ञान जिस शक्ति द्वारा पदार्थों का स्वरूप जाना जाता हो, पदार्थो का निश्चय किया जाता है, वह ज्ञान है । ज्ञान आत्मा का मूल और अभिन्न लक्षण है। मिथ्या दृष्टि का ज्ञान "अज्ञान" कहा जाता है और सम्यक्-दृष्टि का ज्ञान : सम्यक् ज्ञान" बोला जाता है। ज्ञान के पांच भेद हैं-१ मति ज्ञान, २ श्रुति ज्ञान ३ अवधि ज्ञान, ४ मन. पर्याय ज्ञान और ५ केवल ज्ञान । इनका स्वरूप यथा स्थान पर लिखा जा चुका है। ___ अज्ञान के ३ भेद है-१ मति अज्ञान, २ श्रुति-अज्ञान और ३ कुअवधि अथवा विपरीत अवधि ज्ञान । सम्यक् ज्ञान का ही नाम-प्रमाण है। प्रमाण के दो भेद किये हैं:१ प्रत्यक्ष और २ परोक्ष । उपरोक्त पांचो भेद प्रत्यक्ष के ही समझना चाहिये । इसी प्रकार परोक्ष के भी जो पाँच भेद-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम किये जाते हैं उनका भी मति ज्ञान और श्रुति ज्ञान में अन्तर्भाव समझ लेना चाहिए।

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