Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
View full book text
________________
४३४ ]
[ व्याख्या कोष
हूँ । नोकषाय के ९ भेद है, वे इस प्रकार है: -१ हास्य २ रति ३ अरति * भय ५ शोक ६ जुगुप्सा ७ स्त्री वेद ८ पुरुष वेद ९ नपुंसक वेद ।
प
१ - प्रकृति
(१) स्वभाव ( २ ) संसार |
२ - प्रकृति बध
कषाय और योग के कारण से आत्मा के साथ दूध पानी की तरह मिलने के लिये आने वाले कर्म- पुद्गलो का जो तरह तरह का स्वभाव भावनानुसार बनता है, वह प्रकृति वध है ।
प्रकृति बध के आठ भेद कहे गये है, वे इस प्रकार है
१ ज्ञानावरण, २ दर्शनावरण, ३ वेदनीय, ४ मोहनीय, ५ आयु, ६ नाम, ७ गोत्र और ८ अन्तराय ।
३ - प्रत्यभिज्ञान
स्मृति के बल पर किसी प्रत्यक्ष पदार्थ के सम्बन्ध में जा जोड़ रूप ज्ञान होता है, वह प्रत्यभिज्ञान है । जैसे - यह वही तालाव है, जिसका कल देखा 'था, यह आदमी तो उस मनुष्य के समान है, इत्यादि ।
४— प्रतिक्रमण
जो व्रत, त्याग-प्रत्याख्यान, नियम, सयम ग्रहण किये हो, उनमें जो कुछ भी दोप अथवा त्रुटी मूर्खता वश या प्रमाद वश आ गई हो तो व्रत आदि को निर्मल करने के लिये उन दोषो को खेद पूर्वक प्रकट करते हुए, पाप से निवृत्त होना और पुन दोष अथवा त्रुटी को नहा पैदा का पोषण करना ही प्रतिक्रमण है ।
होने देने की भावना