Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[ कषाय-सूत्रं
टीका-जब तक ज्ञान, दर्शन और चारित्र का आराधन करके आत्मा को पूर्ण निर्मल नहीं किया जायगा, शात और अनासक्त नही किया जायगा, तब तक बार बार मोह अपनी ताकत लगाता ही रहेगा। __ मोह की प्रवृत्तियो का प्रवाह अनासक्त होने पर ही रुक सकता है, । अन्यथा नहीं।
मोहेण गम्भं मरणाइं ए।।
, आ०, ५, १४३, उ, १ . टीका-मोह कर्म के कारण से ही ससारी जीव को बार बार गर्भ मे आना पड़ता है और बार बार मृत्यु के चक्कर मे फसना पडता है। मोह की महिमा बहुत ही गूढ है, वह अनेक रूप धारण कर जीवन में आता है। मोह आत्मा को मदिरा के समान वेभान कर देता है। ससार का सारा चक्र मोह रूपी नट के हाथ में ही स्थित है।
( ३३ ) अहिगरणं न करेज्ज पंडिए ।
। सू०:२, १९, उ, २ . ____टीका--ज़ो पडित है, यानी जो आत्मा को शाश्वत् सुख में पहुंचाना चाहता है, तो उसको कलह से दूर ही रहना चाहिये । वैरभाव, लडाई-झगडा आदि के स्थान पर प्रेम, सहानुभूति और बन्धुत्व भावना रखनी चाहिये।
(३४) आरम संमिया कामा, न ते. दुक्ख विमोयगा। 2. सू., २, ३ .