Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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अधर्म-सूत्र
( १ ) । अहम्म कुणमाणस्ल, अफला जन्ति राइओ।
उ० १४, २४ टीका-~-अधर्म करने वाले के लिये, पाप का सेवन करने वाले के लिये प्रत्येक रात्रि अर्थात् रात और दिन व्यर्थ ही जा रहे है।
' पडन्ति नरए, घोरे, ' जे नरा पात्र कारिणो।
उ०, १८, २५ टीका-जो आत्माएँ पाप करने वाली है, जो पांचों इन्द्रियों के भोग भोगने वाली है, जो मोह, माया और ममता मे ही मस्त रहने वाली है, वे घोर नरक में पड़ती है। विविध दुख को प्राप्त करने वाली होती है।