Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
View full book text ________________
४०२]
- - - मूल-सूक्तियाँ
८९७--सुस्सूसए आयरि अप्पमत्तो ।
(कर्तव्य ९) ८९८-सुहावहं धम्म धुर अणुत्तरं धारेह निव्वाण गुणावहं महं।
(धर्म २७) ८९९-सुहुमे सल्ले दुरुद्धरे, विउमता पयहिज्ज संथव ।
(कपाय २९)
९००-सूरा दृढ परक्कमा।
(महापुरुष १४) ९०१–सेणे जह वट्टयं हरे, एव आउखयमि तुट्टई ।
(उपदेश ५८) ९०२-से य खु मेयं ण पमाय कुज्जा । (प्रशस्त ९)
९०३-से सोयई मच्चु महोवणीए धम्म अकाऊण परमि लोए।
( धर्म १९ ) ९०४-से हु चक्खू मणुस्साण, जे कंखाए य अतए ।
( महापुरुष ७) ९०५-सोय परिण्णाय चरिज्ज दते ।
( उपदेश, ८५) ९०६-सकट्ठाण विवज्जए ।
( उपदेश २७ ) ९०७-सगाम सीसे व पर दमेज्जा । ( सद्गुण, १० )
९०८-सघ नगर । भद्द, ते ! अखड चारित्त पागारा।
(प्रा म, १८) ९०९-संघ पउमस्स भई, समण गण सहस्स पत्तस्स ।
(प्रशस्त, २५) ९१०-सजम-तव-तुंबा रयस्स, नमो सम्मत्त पारियल्लस्स ।
(प्रा, मं, १९)
Loading... Page Navigation 1 ... 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537