Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi

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Page 492
________________ १२४] [व्याख्या कोष १-चतुर्विध संघ साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका का सम्मिलित नाम “चतुर्विध इंघ" है । चतुर्विध सघ की स्थापना श्री तीर्थकरो द्वारा की जाती है । २-चारित्र आचार्यों और महापुरुषो द्वारा स्थापित धार्मिक-सिद्धान्तो के अनुसार अच्छा आचरण ही चारित्र है । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एव अममता के आधार पर किया जाने वाला अच्छा व्यहार ही चारित्र है। चारिता पाच प्रकार का कहा गया है - १ सामायिक, २ छेदोपस्थापनीय, ३ परिहारविशुद्धि, ४ सूक्ष्म साम्परायिक, और ५ यथाख्यात । ३-चेतना ज्ञान-शक्ति का नाम ही चेतना है । चेतना ही जीव का लक्षण है । चित्त ज्ञा, मन का विकास ही चेतना है । ४-चौरासी लाख जीव-योनि । जीवो के उत्पन्न होने का स्थान, जीवो के शरीर धारण करने का स्थान जीव-योनि कहलाता है। स्थानो की कुल सस्या चौरासी लाख कही गई है। बह इस प्रकार है - पृथ्वी काय (पृथ्वी के जीव-केवल शरीर वाले ) ७ लाख अपकाय (जल का पिण्ड रूप-केवल शरीर वाले ) ७ लाख तेउ काय ( अग्निका पिंड रूप-" " ) ७ लाख वायु-काय ( हवा के पिंड रूप-" " ) ७ लाख प्रत्येक वनस्पति काय- " ) (डाली-पौधे पर लगने वाले फल फूल) १० लाख . साधारण वनस्पति काय ( जमीकद, आलू आदि ) १४ " वो इन्द्रिय जीव (शरीर और मुंह वाले ) २ "

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