Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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संसार-सूत्र
( १ ) . जम्प्रदुख जरा दुक्ख दुश्खो हु संसारो।
उ०, १९, १६ टीका-यह ससार दुख हो दुख से भरा हुआ है, जन्म का दुख है, जरा यानी बुढापे का दुख है, रोग, मृत्यु, आकस्मिक संयोगवियोग का दुख है, इस प्रकार नाना विपत्तियो का जमघट इस ससार में भरा हुआ है।
(२) एगन्त दुक्ख जरिए व लोए ।
सू०, ७, ११ टीका-यह ससार ज्वर के समान एकान्त दुख रूप ही है। जैसे-ज्वर-ताप-बुखार-एकान्त रूप से दुखदायी ही है, वैसे ही यह संसार भी जन्म-मरण, सयोग-वियोग से युक्त होने के कारण एकान्त रूप से दुखमय ही है।
(३) दाराणि य सुया चेव, मयं नाणुस्त्रयन्ति य ।
उ०, १८, १४ टीका-जीवन मे और कुटुम्ब में, वैभव मे और भोगो में, इतनी आसक्ति, इतनी मूर्छा क्यो रखते हो? याद रक्खो कि मरने पर स्त्री और पुत्र आदि साथ नही आनेवाले है, ये तो जहाँ के तहाँ ही रह जाने वाले है, केवल पाप और पण्य ही साथ में लाने वाले है।