Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा]
[.३७६ हो जाती है । स्त्रियों का सहवास घन; 'धर्म, शक्ति और सद्गुण - आदि का नाश करने वाला है।
पुढो य छंदा इह मागणवा उ ।
- सू०, १०, १७ - - टीका-इस लोक मे मनुष्यों की भिन्न भिन्न रुचि होती है, एक समान रुचि होना अत्यत कठिन है । "मु. मुडे मति भिन्ना" इसका समर्थक है।
( १८ ) जीवो उवओग-लक्खण।
• उ०, २८, १० टीका-जीव का लक्षण, आत्मा का लक्षण उपयोग है। यानी अनभति, ज्ञान या चेतना ही आत्मा का मुख्य और असाधारण धर्म है।
(१९) वण रस गघ फाला, पुग्गलाणं तु लक्खणं।
उ०, २८, १२ टीका-पुद्गल का यानी अचेतन रूप जड पदार्थ का--रूपी तत्त्व का लक्षण वर्ण, गध, रस और स्पर्श धर्म वाला होना है। छ:द्रव्यो में से केवल इस जड़ द्रव्य मे ही रूप, रस, गध और स्पर्श-धर्म पाये जाते है और किसी मे नही। शेष पाचो द्रव्य अमर्त्त है, अरूपी है, अवर्णं वाले है, अगध वाले है, अस्पर्श वाले है और अरस वाले है ।
(२०) गइ लकावणो उ धम्मो।
उ०, २८, ९