Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi

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Page 462
________________ ३९४ ] ८३३ -- समय सया चरे । ८३४ - सम सुह दुक्ख सहे अ जे स भिक्खू । ८३५ - समाहि कामे समणे तवस्सी । ई (क्षमा ८). ( श्रमण- भिक्षु २ ) ( तप १३ ) ८३६ -- समियं ति मन्न माणस्स समिया, वा असमियां वा समिआ होइ । ( दर्शन ५) ८३७ -- समुप्पेह माणस्स इक्काययण रयस्स, इह विप्पमूक्कस्स नत्थि मग्गे विरयस्स । ( सद्गुण १९ ) - th "" } ८३८–समो निन्दा पससासु तहा माणावमाणुओं । (प्रशस्त १६ ) ८३९ - सया सच्चेण सपने मिति भूएहिं कप्पए । ( सत्यादि २३ ) ८४०-सय सय पससन्ता, गरहता पर वयं, ससार ते विउस्सिया । - (बाल ३८ ) - 7 [ मूल संक्तियों ८४१—सरीर माहु नावत्ति जीवों बच्चइ (योग १५ ) . ८४२ -- सल्ल कामा विस कामा कामा आसी विसोवमा । ( काम ७ ) ८४६ - सव्वत्थ विणीय मच्छरे । C ८४७ -- सव्वत्थ विरति कुज्जा । ८४८ - सव्वत्थं विरति कुज्जां । ८४३ - सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं । ९४४ - सव्वओ पमत्तस्स भय । ८४५–सव्वओ संवडे दते, आयाण सु समाहरे ।. MP 17 F F नाविओ । ( प्रशस्त ५ ) ( भोग १४ ) ( तप ८ ) ( कर्तव्य १७ ) ( सद्गुण, १७ ) - 1 ( उपदेश ७४ ),

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