Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा
[२४९
अहिंसा और ब्रह्मचर्य मे विश्वास नही रखने वाले है, वे मिथ्यादष्टि है, वे अनार्य है, और जो अनार्य है, वे मिथ्यादृष्टि है।
(२८ ) असमियंतिमन्नमाणस्स, समिया वा असमिया वा असमियाहोइ ।
आ०, ५, १६४, उ, ५टीका-जो आत्मा ज्ञान में, दर्शन मे और चारित्र में विश्वास नही करता है, जो जिन-वचनो के प्रति अश्रद्धा प्रकट करता है, वह मिथ्यात्वी है। उस मिथ्यात्वी के लिये सत्य भी झूठ हो जाता है।
और झूठा ज्ञान तो उसके लिय झूठा है ही। यानी सत्य और झूठ दोनों ही उस मिथ्यात्वी के लिये झूठ रूप ही है। यह मिथ्यात्वश्रद्धा का परिणाम है।
(२९) पाव दिट्ठी विहन्नई।
उ०, २, २२ टीका-पाप दृष्टि वाला प्राणी विकार का और विषय का पोषण करने वाला होता है। वह मर्यादा का उल्लघन करने वाला होता है । वह वीतराग भगवान को वाणी और आज्ञा की विराधना करता है।
(३०) अणियते अयं वासे, , णायएहि सुहीहि य ।
सू०, ८, १२ - टीका-आत्मा-अज्ञानवश "यह मेरा, यह मेरा" ऐसा कहता ही रहता है और अपने आपको इस मोह में भूलाये रखता है। परन्तु