Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[ कामादि-सूर
वेदना और असह्य मानसिक खेद उठाना पड़ता है। भोगी न तो कभी सुखी हुआ है और न कभी होगा।
- ( ३५ ) . अझोववन्ना कामहि, पूयणा इव तरुण ए।
. सू०, ३, १३, उ, ४ टीका-जैसे पूतना नामक डाकिनी अथवा रोग-विशेप बालकों पर आसक्त रहता है, वैसे ही आत्मिक सुख का विरोधी पुरुष भीकामान्ध पुरुष भी-काम-भोगो मे अत्यत मूर्च्छित रहते है। जिसका परिणाम नरक, तिथंच आदि गति में परिभ्रमण करना होता है।
थम्मा कोहा पमापणं, रोगेगालस्सएण य सिक्खा न लब्भई। ,
उ०, ११, ३ । टीका--अहकार से, क्रोध से, प्रमाद से, रोग से और आलस्य से-इन पाच-कारणो से ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता है। ज्ञान प्राप्ति के लिये विनय, नम्रता, प्रयत्न, और भावना मय आकाक्षा की आवश्यकता है।
द्धे अणिग्गहे अविणीय। . . . . उ०, ११, २ टीका-~जो अहकार युक्त है, लोभी है, और इन्द्रियो का गुलाम है, वह अविनीत है। वह भगवान की आज्ञा का विराधक है। जो विराधक है, वह मोक्ष से दूर है।
(३८) बोच्छिद सिगोह मप्पणो।
उ०, १८, २४