Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा]
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टीका-काम-भोगो मे आसक्त रहता हुआ प्राणी कभी भी राग द्वेष से रहित नहीं हो सकता है ।
(१९) कान भोगाणु राएणं केसं संपडिवज्जई ।
उ०, ५, ७ ___टीका-काम भोग के अनुराग से, भोगों में आसक्ति रखने से क्लेश ही क्लेश प्राप्त होता है। भोगो से सुख की आशा करना बालू से तेल निकालने के समान है।
(२०) काम भोगा विसं ताल उडं।
___ उ०, १६, १३ टीका--काम-भोग तालपुट विष के समान है जो कि तत्काल मृत्यु को लाने वाले है। आत्मा के गुणो का नाश करने वाले है। शीघ्र ही अधोगति को देने वाले है | काम-भोगो से सिवाय विनाश के, सिवाय नाना विध दुःखो की प्राप्ति के अन्य कुछ भी प्राप्त होने वाला नही है।
( २१) वित्ते गिद्धे य हात्थसु, दुहओ मलं संचिणाइ।
२०, ५, १० टीका-स्त्रियो मे और धन में मूच्छित होने से, इनमें आसक्त रहने से, आत्मा इस लोक मे भी अपना समय, अपनी शक्ति-और अपना जीवन व्यर्थ खोता है, तथा पर लोक मे भी नाना तरह के दुख उठाता है । वास्तव मे भोग घृणित वस्तु है।