Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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कामादि-सूत्र
( १ )
नागो जहा पंक तलाव सन्नो, एवं वयं काम गुगोसु गिद्धा 1
उ० १३, ३०
टीका - जैसे हाथी कीचड़ वाले तालाव मे फस जाता हे और कीचड़ की बहुतायत से वही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, वैसे ही हम संसारी जीव भी काम भोगो मे फसे हुए है और अंत मे मर कर दुर्गति को प्राप्त होते है ।
( २ ) अबंभ चरित्र घोरं ।
द०, ६, १६
टीका -- अब्रह्मचर्य, मैथुन या वीर्य नाश घोर पाप है, इससे आत्मा का तो पतन होता ही है, परन्तु गारीरिक, मानसिक और वाचिक शक्तियाँ भी इससे नष्ट होती है । सामारिक आपत्तियाँ भी नाना प्रकार की इससे पैदा हो जाती है ।
( ३ )
इत्थी वसं गया वाला, जिरा-सासरा परम्मुहा । सू०, ३, ९, ३, ४
टीका - स्त्री के वग में गये हुए जीव यानी ब्रह्मचर्य का पालन नही करने वाले मूर्ख - अज्ञानी जीव, जिन-गासन से अहिंसा धर्म से परामुख है यानी ऐसे कामी पुरुष जिन - शासन के पालक या आराघक नही कहे जा सकते है ।