Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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योग-सूत्र
(१.) पंच निग्गहया धीरा ।
द०, ३, ११
टीका - जो पाँचो इन्द्रियो का निग्रह करते है, विषयों से हटकर सेवा, त्याग, ब्रह्मचर्य, अनासक्ति आदि सात्विक मार्ग में इन्द्रियो को चलाते है, वे ही धीर पुरुष है, वे ही आदर्श पुरुष है ।
( २ )
आय गुत्ते सया वीरे । आ०, ३, ११७ उ, ३
टीका - जो वीर होता है, जो महापुरुष होता है, वह सदैव अपने मन, वचन और काया को नियंत्रण में रखता है । मनोगुप्ति, वचन गुप्ति और काया - गुप्ति का वह सदैव सम्यक् रीत्या पालन करता है ।
( ३ )
भावणा जोग सुद्धप्पा, जलेणावा व श्राहिया ।
सू०, १५,५
टीका--उत्तम-भावना के योग से जिसका अन्तःकरण शुद्ध हो गया है, वह पुरुष ससार के स्वभाव को छोड़कर, ससार के मोह को त्याग कर, जल में नाव की तरह संसार - सागर के ऊपर रहता है । जैसे नाव जल में नही डूबती है, उसी तरह वह पुरुष भी संसार - सागर में नही डूबता । यह सब महिमा उत्तम भावना के साथ शुद्ध योग की है ।