Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[ महापुरुष-सूत्र ___टीका-धर्म क्रियाओ का यानी दया, क्षमा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्म-चर्य, सतोष, अनासक्ति, इन्द्रिय-दमन, कषाय-विजय आदि का आचरण करने वाला देव गति मे या उच्च गति में उत्पन्न होता है।
जे यबन्ध पमुक्ख मन्नेसी कुसले पुणो नो बद्ध नो मुक्के ।
आ०, २, १०३, उ, ६ टीका--जो प्रशान्त आत्मा, बन्ध और मोक्ष के कारणो का अन्वेषण करने वाली है, यानी जो वीतराग भावना के साथ निर्जरा करती हुई आत्म-विकास कर रही है, वह नवोन बध नहीं करती है और वर्तमान मे मुक्त नहीं होने पर भी शीघ्र ही मुक्त हो जाने वाली है।
(४०) बहु पि अणुसासिए, जे तहच्चा, समे हु से होइ- अझंझपत्ते।
सू०, १३, ७ . टीका-भूल होने पर गुरुजनो द्वारा उपालभ आदि के रूप में “शासन करने पर जो पुरुष अपनी चित्त-वृत्ति को शुद्ध और निर्मल रखता है, यानी क्रोध नहीं करता हुआ भूल स्वीकार कर पुन. कर्त्तव्यमार्ग मे आरूढ हो जाता है, ऐसा पुरुष ही आध्यात्मिक गुणो को, - समता और शाति आदि गुणो को प्राप्त करने का अधिकारी है, ऐसा “पुरुष ही शुद्ध अन्त. करण वाला होने से भव्य आत्मा है।
विभज्ज वायं च वियागरेज्जा।
सू, १४, २२ टीका-पंडित पुरुष स्याद्वाद. मय भाषा बोले, एकान्त आग्रह “पूर्ण और निश्चयात्मक भापा नहीं बोले 4 स्याद्वाद युक्त भाषा लोकव्यवहार से मिलती हुई और सर्वव्यापी भाषा है । यह निर्दोष भी