Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा
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, टीका-कर्म-मल के शोधन में, पाप को हटाने में दुष्वृत्तियो और विकारो को दूर करने में, अत्यत समर्थ इस वाणी मे यह उपदेश श्री चीतराग प्रभु महावीर द्वारा दिया गया है। यानी यह जिनवाणी, यह जैन धर्म, आत्मा मे स्थित सपूर्ण दोषो को, वासना को, आसक्ति को, अज्ञान को और अविवेक को, हटाने में पूर्ण रीति से समर्थ है-शक्ति गाली है। । ।
(१५) । भाव विसोहीए, निव्वाण मभिगच्छद ।
सू०, १, २७, उ, २ टीका-भावो की विशुद्धि से-अनासक्ति और निर्ममत्व भावना से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । भाव-विशुद्धि से कर्म-बन्धन नही होता है, और कम-बन्धन के अभाव में स्वभाव से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
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' समो निन्दा पसंसासु तहा माणावमाणओ।
उ०, १९, ९१ टीका-निन्दा और स्तुति मे, मान और अपमान मे समभाव रखना चाहिए। अनुकूल और प्रतिकूल सभी परिस्थितियो मे समता रखने से बुद्धि का समतोलपना रहता है, विवेक वरावर बना रहता है और इससे पथ-भ्रष्ट होने का डर नहीं रहता है।
पाए वीरे महा विहिं सिद्धिपहं आउय धुवं ।
सू०, २, २१, उ, १