Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[ सत्यादि भाषा-सूत्र
. टीका-जो परमार्थी पुरुष यत्ता पूर्वक-विवेक पूर्वक और बुद्धिगानी-पूर्वक बोलता है, वह बोलता हआ भी मौन-गण से युक्त हैगौनी ही है। और मौनी जितना ही पुण्य उपार्जन करता है।
- (. २८ ) - मुसावार्य च धज्जिज्जा, अदिनादाणं च वोसिरे ।
- सू० ३, १९, उ, ४ टीका-झूठ का परित्याग कर दो और चोरी-से सदैव दूर रहो क्योकि ये पाप इस लोक और परलोक मे सर्वत्र दुख के देने वाले है, प्रतिष्ठा और विश्वास का नाश करने वाले है।
(२९) मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पयोग काले य दुही दुरन्ते ।
उ०, ३२, ३१ टीका-झूठ बोलने के पहले, झूठ बोलने के पीछे और झूठ दोलने के समय में तीनो काल मे झूठा आदमी दुखी होता है और उसका दुःख वहुत ही कठिनाई से छूटता है।
(३०) मायामुसं वड्ढ लोभ दोसा।
उ०, ३०, ३० टीका-माया-मृषावाद, यानी कपट पूर्वक झूठ लोभ के दोषों को बढाता है, तृष्णा को प्रज्वलित करता है ।
(३१) मुसा भासा निरत्थिया।
उ०, १८, २६ टीका-मिथ्या भाषा, अप्रिय भापा, तुच्छ शब्दीवाली भाषा, मर्मभेदी थापा निरर्थक होती है, वह क्लेश-वर्द्धक होती है । वह पापमय होती है।