Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा] मात्र के साथ मैत्री भावना रखनी चाहिये, जीव-मात्र' के साथ दया का व्यवहार रखना चाहिये। . . . .
(२४)
सादियं ण मुसं वूया, एस धम्म वुसीमओ।
' सू०, ८, १९ । टीका-माया करके झूठ नहीं बोले । जितेन्द्रिय महापुरुष कह यही धर्म है । भगवान का यही फरमान है । माया के साथ बोला जाने वाला झूठ शल्य है, जो कि सम्यक्त्व को और सचाई के मार्ग को नष्ट करता है, मिथ्यात्व को पैदा करता है और अनन्त संसार को बढ़ाता है।
। । " ( २५ ) .
मात्तिट्ठाणं विवजेजा। . . सू०, ९, २५ '' टीका-कपट भरी भाषा का परित्याग कर देना चाहिये, क्योंकिकपट भरी भापा माया-मृषावाद ही है, जो कि सम्यक्त्व का नामकरने वाली है।
(२६) णेव वंफेज मम्मयं।
. सू०, ९, २५ .. . ... . - टीका-मर्म-घाती वचन हिंसाजनक होता है। यह महान् कष्टजनक होता है । वह सत्य होता हुआ भी झूठ ही है। अतएव मर्मघाती वाक्य अथवा वचन नही बोलना चाहिये।
( २७ )..
भासमाणो न भासेज्जा। . . . सू०, ९, २५
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