Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सद्गुण-सूत्र
___ - (१)
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निमम्मे निरहंकारे।
उ०, ३६, २१ टीका-जीवन ममता रहित,और अहकार रहित हो। ऐसा जीवन ही वोषप्रद है। ऐसा जीवन ही कृतः कृत्य है। ऐसा जीवन ही सफल है।
- -.., अप्पियसावि मित्चस्स, - - , - - :- रहे. कल्लाण भासई ।।
। उ०, ११, १२ . . . टीका-अप्रिय मित्र का भी एकान्त मे जो गुणानुवाद करता है, अप्रिय मित्र के प्रति भी, जो निन्दा भाव नही रखता है तथा सदर उसका हितचिन्तन ही करता रहता है, ऐसा पुरुष ही विनीत है। वह
आज्ञा का आराधक है। - .: - ___- . , . : . ३) . ..- it , २ . अकोहणे, सञ्चरए सिवा सीले। - 15 : 1 - - , - उ, ११, ५..
. : - टीका-जो अक्रोधी है, नम्र है , और सत्यानुरागी, है वही पुरुष सम्यक् ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
3 माण महवया जिणे ।
दः, ८, ३९