Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा
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(८.) सुयस्त आराहणयाए अन्ना खवेइ, न य संकिलिस्सह ।
उ० २९, २४, वा ग टीका--सूत्र-सिद्धान्त की आराधना से, भगवान जिनेन्द्र देव की वाणी की परिपालना करने से अज्ञान दूर होता है, और उससे आत्मा किसी भी स्थान पर सक्लेश यानी दुख नहीं पाता है। हर स्थान पर आनद ही आनद की प्राप्ति होती है । ,
(८१) -- रयाई खेवेज पुराकडाई।
उ०, २१, १८ । टीका-पूर्व कृत पापो को निरन्तर क्षय करते रहना चाहिये। हमारी प्रवृत्तियाँ निरन्तर सात्विक और सेवामय ही होना चाहिये।
.... -( ८२ ) अप्पाण रक्खी चरे अप्पमत्तो।
उ,१, १० - टीका--आत्मा की जन्म-मरण से, ससार से रक्षा करने वाला मोक्षाभिलाषी तथा आत्मार्थी, अप्रमादी होकर इन्द्रियो और मन को अशुभ-योग से एव कपाय से हटाकर, अपनी वृत्तियो को शुभयोग और श्रेष्ठ-ध्यान में लगाता हुआ अपना काल-क्षेप करे-समय इस प्रकार बितावे।
(८३) निरासवे संख वियाण कम्म, उवेह ठाण विउलुत्तमं धुवं ।
उ०, २०, ५२