Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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११८ ],
[ सात्विक प्रवृत्ति-सूत्र
(१६) प्रायंक दंसी न करेइ पावं,
आ०, ३, ७, ३, २ टीका-जो नरक, तिर्यंच, मनुप्य और देव गति के जन्म, मरण, पीडा, वेदना, दुःख और भय आदि को, और इनके आतक को देखता है, सम्यक् रूप से इन पर विचार करता है, इन पर श्रद्धा करता है, तो ऐसी आत्मा भी पाप कर्म से दूर हो रहती है । पाप कर्म से वह मलीन नही होती है।
(१७) जे एगं नामे से वहुं नामे, .. . जे वहुँ नामे, से एगं नामे ।
आ०, ३, १२४, उ, ४ . टीका-जिस आत्मा ने एक कर्म का, मोहनीय कर्म का-क्षय कर दिया है, उसने सभी कर्मो का क्षय कर दिया है। इसी प्रकार जिसने धन घातिया कर्मों का क्षय कर दिया है, उसने मोहनीय - कर्म का भी क्षय कर दिया है, ऐसा समझो । मोहनीय कर्म के क्षय होनो पर ही शेप कर्मों का क्षय होना अवलवित है।
. भय'वेराओ उवरए। . ..
उ०, ६, ७ - टीका-दूसरे को भय-भीत करने से अथवा दूसरे के साथ वरविरोध करने से सदैव दूर ही - रहना चाहिये । भय, निर्वलता और पाप को बढाने वाला होता है, तथा वैर कषाय-अग्नि' को प्रज्वलित करने वाला होता है।
( १९ ) . पञ्चमाणस्स कम्महिं, नालं दुवखाओ मोमणे ।
उ०, ६, ६ ,