Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा ] . .
[८३.
टीका-ससार के भोग सबन्धी सुखो से जिनको उदासीनता हो गई है, संसार के वैभव से जिनको वैराग्य हो गया है, ऐसे महापुरुष स्त्रियो से विरति ही, रक्खें। स्त्रियो से दूर ही रहें। ब्रह्मचर्य-व्रत को ही आध्यात्मिक उच्चता की आधार भूमि समझें ।
विरते सिणाणाइसु इथियासु ।
सू, ७, २२ टीका-साधु की साधुता इसी में है कि वह शृगार-भावनासे, स्नान आदि क्रियाओं से दूर रहे । और स्त्रियो के संसर्ग से सदा बचता रहे, । काया से शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करता रहे ।
इत्थी निलयस्स मज्झे, , ,
— न यम्भयारिस्स खमो निवासो। .. -
उ०, ३२, १३ । टीकास्त्री के रहने के स्थान में यानी स्त्री के आवागमन के स्थान में अथवा स्त्रियो के पडोस म ब्रह्मचारी का निवास आपत्ति-जनक होता है। व्रत-नाशक और चित्त को चचलता को प्पैदा करने वाला होता है । . ..
I (२१)
गुनिदिए गुत्त वम्भयारी . . : : “सया अप्पमत्त विहरज्ज] .. - - - - उ०, १६, ग, प्र, ..
" टीका-गप्त, इन्द्रिय वाला होकर, इन्द्रयो.. पर गुप्त रूप से सयम शोल होकर, गुप्त ब्रह्मचारी होकर, कर्मठ होकर अप्रमादी होकर सदा विचरे और इसी तरह से अपना जीवन-काल व्यतीत करता रहे।