Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[शील-ब्रह्मचर्य-सूत्र ... (.२२ ) . सबिदियाभिनिव्वुडे पयासु
सू०, १०,४ । टीका-आत्म कल्याण की इच्छा वाले पुरुष के लिये यह आवश्यक और अचल कर्त्तव्य है कि वह स्त्रियो की तरफ से सभी इन्द्रियो को रोक कर जितेन्द्रिय रहे । स्त्रियों का मन, वचन और काया से भी ध्यान नही करे। स्त्रियों की आकाक्षा नही करे।
णो निरगंथे इत्थाणं इन्दियाई मणोहराई, मणोरमाइं पालोपज्जा, निझाएज्जा।
उ०, १६, ग, च० . टीका-जो निग्रंथ है, ब्रह्मचारी है, ईश्वर-प्राप्ति की आकाक्षा वाला है, उसे स्त्रियो की मनोहर और मनोरम इन्द्रियो को न तो देखना चाहिये और न उनका ध्यान अथवा चिन्तन ही करना चाहिये।,, । . . । } , , , , , . ( २४ । ।
इत्थियाहिं अणगारा,. संवासेण णास मुवयंति।
___. सू:, ४, २७, उ, १ टीका-जैसे अग्नि से स्पर्श किया. हुआ लाख का घड़ा शीघ्र तप कर नाश को प्राप्त हो जाता है, उसी प्रकार स्त्रियो के ससर्ग से योगी पुरुष' -भी-सयमी पुरुष भी भ्रष्ट हो सकता है। अतएव मन वचन दौर -काया से स्त्री-सगति से दूर रहना चाहिये । आत्मकल्याण- की भावना की पूर्ति के लिये ब्रह्मचर्य सर्व प्रथम, आवश्यक गुण है।