Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा ] . .
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(३२.) पियं करे पियं वाई से सिक्खं लधु मरिहई ।
उ०, ११, १४ टीका-जो प्रिय करने वाला है, गुरु के मनोनुकूल सेवा और कार्य करने वाला है, प्रिय तथा सत्य बोलने वाला है, वही सम्यक् ज्ञान को प्राप्त करने के लिये योग्यता रखने वाला है। ज्ञान के पहले ये गुण आवश्यक है । अनुकूल गुण रूपी भूमि मे ही ज्ञान रूप बीज का वृक्ष रूप विकास हो सकता है।
सावजं न लवे मुणी। . . . .द., ७, ४. टीका-इन्द्रियो और मन पर संयम तथा विवेक रखने वाला मुनि झूठ नही बोले, क्योकि झठ से अविश्वास और पतन की तरफ जीवन बढता है।
अपुच्छिो न भासिज्जा।
द०, ८, ४७ टीका-विना पूछे और विना बुलाये, कभी नही बोले । बिना बुलाया बोलने पर मूर्खता ही मालूम होती है-इससे अपमान ही होता है।
। ( ३५ )
पिट्टि मंसं न खाईज्जा।
द०, ८, ४७ -: टीका-कभी किसी की निंदा नही करनी चाहिये। निंदक धिक्कारा जाता है। वह अविश्वास का पात्र वनता है । इस लोक और परलोक में दुखी होता है।