Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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अटीका-संसार-समुद्र से रक्षा करने वाला केवल एक धर्म ही
सूक्ति-सुधा]
[५१ (१२), एक्को हु धम्मो ताणं, न विज्जई अन्न मिहेह किंचि।
उ०, १४, ४० टीका-संसार-समुद्र से रक्षा करने वाला केवल एक धर्म ही है जो कि सयम और पर सेवा रूप है। दूसरा और कोई पदार्थ आत्मा की संसार के दुखों से रक्षा नही कर सकता है।
(१३) धम्मविऊ उज्जू । .
( आ०, ३, १०८, उ, १ टीका-जो आत्मा चेतन और अचेतन द्रव्यो के स्वभावको तथा श्रुत-चारित्र रूप धर्म को जानता है, वही “धर्म विद् है । वह सरल भावना वाला है और उसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र का अस्तित्व है।
(१४) . आयरिय विदित्ताणं, सव्व दुक्खा विमुच्चई।
' उ०, ६, ९ टीका--आर्य धर्म-दया, दान और दमन रूप धर्म को जानकर उसके अनुसार आचरण करने से सभी दुःखो का नाश हो जाता है।
(१५) . धम्म सद्धाए णं साया सोक्खसु, रज्जमाणे विरज्जा।
उ०, २९, तृ० ग० - टीका--धर्म पर श्रद्धा करने से साता वेदनीय कर्म के उदय से प्राप्त होने वाले सुखो पर तथा पौद्गलिक आनद पर अरुचि पैदा होती है, विरक्ति पैदा होती है।