Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[ धर्म-सूत्र
टीका-आयं धर्म को अहिंसा प्रधान आचार धर्म को एवं स्याद्वाद प्रवान सिद्धान्तो को ( समभाव पूर्वक तुलनात्मक विचारों को ) ग्रहण करो, इन पर श्रद्धा करो, इनको अमल में लाओ ।
( २३ )
धारिये मरगं परम च समाहिए ।
नू० ३, ६, उ, ४
टीका - आर्य-मार्ग यानी दया, दान, दमन, सत्य और शील रूप यह मार्ग श्रेष्ठ समावि वाला है। तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित मार्ग पर चलने से परम-समाधि रूप कल्याण की प्राप्ति होती है ।
( २४ ) जीवियं नावकखिज्जा, सोच्चा धम्म मरणुत्तरं । मू०, ३,१३, उ, २
टीका - अहिंसा प्रधान श्रेष्ठ धर्म को सुनकर एवं उस पर विश्वास कर कर्त्तव्य मार्ग पर चलने वाले पुरुष को चाहिये कि कर्त्तव्य मार्ग पर चलते हुए प्रतिकूल उपसर्ग आदि कठिनाइयां आवें तो • भी सासारिक जीवन की ओर इन्द्रिय सुखके जीवन की आकाक्षा नही करे, कर्त्तव्य मार्ग से पतित न हो ।
( २५ )
णच्चा धम्मं अणुत्तरं, कय किरिए व यावि मामए ।
मृ०, २, २८, उ, २
टीका— श्रेष्ठ धर्म को सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र को जानकर सयम रूप क्रियाका अनुष्ठान करें । तप, त्याग, सेवा और समता की आराधना करे । एवं किसी भी वस्तु पर ममताभाव और परिग्रह भाव नहीं रखे ।