Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा]
[५७ ( ३३ ) . दोहिं ठाणेहिं आया केवलि पमत्तं घम्म लमज्जा, सवणयाए, खरण चेव, उसमेण चेव ।
ठाणा, २रा, ठा, उ, ४,४ टीका--आत्मा केवली के कहे हुए धर्म को सुनकर दो प्रकार से प्राप्त करता है-१उपशम रूप से और २ क्षय रूप से ।
जिस आत्मा की श्रद्धा कर्मो के नाश नहीं होने पर बल्कि कर्मों के उपशम होने पर उत्पन्न होती है, वह उपशम धर्म है, तथा जिस आत्मा की श्रद्धा कर्मों के क्षय होने पर उत्पन्न होती है, वह क्षय-धर्म कहलाता है।
( ३४ ) दुविहे धम्मे पन्नते. . . सुश्रधम्मे चेव चरित्त धम्मे चेव ।
ठाणा०, २रा ठा०, १ला उ, २५ । ' टीका-धर्म दो प्रकार का कहा गया है । १ श्रुत धर्म और २ चारित्र धर्म । जिन देव, तीर्थकर, गणधर, स्थविर, पूर्वघर आदि द्वारा प्ररूपित ज्ञान साहित्य या आगम साहित्य श्रुत धर्म है, और श्रावक एव साधुओ द्वारा आचरण किया जाने वाला बारह व्रत तथा पाँच महाव्रत रूप धर्म चारित्र धर्म है।
(३५)
तिविहे भगवया धम्मे, सुअहिज्जिए, सुज्झाइए सुतवस्सिए ।
ठाणा०, ३रा, ठा०, उ०, ४, २७ टीका-भगवान ने तीन प्रकारका धर्म फरमाया है, १ गुरु । आदि विद्वान पुरुषो का विनय करके सूत्रो का अध्ययन करना सूत्र