Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा
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· · सिद्धो हवइ सासओ।
- द०,४, २५ टीका-आत्मा मोक्ष मे जाने के बाद वहाँ से लौट कर नहीं आती है, क्योकि कर्मों का आत्यतिक क्षय हो जाता है, इसीलिये कहा गया है कि सिद्ध-अवस्था, मुक्त-अवस्था, शाश्वत होती है, नित्य और अक्षय होती है।
(७) सव्व मणागय मद्धं, चिट्ठति सुहं पत्ता ।
उव०, सिद्ध, २२ टीका-मुक्त-आत्माएँ जिस क्षण से मुक्त होती है उस क्षण से लगाकर भविष्य में सदैव के लिये, अनन्तानन्त काल तक के लिये, अनन्त सुखों में ही स्थित रहती है। उनके सुख मे कभी भी कोई वाधा उपस्थित नही होती है।
(८) णिच्छिण्ण सब दुक्खा, जाइ जरा मरण बंधण-विमुक्का।
-उव०, सिद्ध, २१ टीका-मुक्त-अवस्था मे किसी भी प्रकार का कोई दुख नही है, सिद्ध-प्रभु सभी प्रकार के दु खो से मुक्त है । जन्म, वृद्धत्व, मृत्यु और कर्म बन्धन जैसी सासारिक सभी उपाधियो से वे सर्वथा मुक्त है। उनके लिये कोई भी उपाधि शेष नही है।
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अजरा अमरा असंगा। ___ उद०, सिद्ध, २०
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