Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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[ मोक्ष-सूत्र
(३) मुद्धण उवेति मोक्खं ।
सू०, १४, १७ ___टीका---गुद्धता से ही, निर्कपाय अवस्था से ही, मोक्ष प्राप्त होता । है । कपाय का सर्वथा अभाव होगा तो अपने आप ययाख्यात चारित्र की प्राप्ति हो जायगी, और इससे स्वभावत मुक्ति की प्राप्ति हो। जायगी।
(८) अध्यावाई सुक्ख, अणुहोंती सासय सिद्धा।
. उव०, सिद्ध, २१ टीका-सिद्ध प्रभु सदैव अव्यावाव यानी निरावाघ, गाश्वत्, स्थायी, नित्य, अक्षय, अविछिन्न वारा वाले सुख का अनुभव करते रहते है। उनके सुखानुभव मे किसी भी प्रकार की और कभी भी कोई वाया उपस्थित नही होती है। वावा उपस्थिति का कारण कर्म होता है, जो कि वहां नहीं है।
सव्य संग विनिम्मुक्को, सिद्ध भवह नीरए ।
उ०, १८,५४ टीका-मोक्ष स्थान में, मुक्त अवस्था में प्रत्येक मुक्त यात्मा सिद्ध होकर-सपूर्ण रीति से कृतकृत्य होकर, आठो कर्मों से रहित होकर, सभी कपाय-विषय, विकार, बासना, मूी, परिग्रह-आसक्ति भादि गे सर्वथा मुक्त होकर, निराकार निरंजन स्प से सर्व शक्ति सम्पन्न होकर अनन्त काल के लिए स्थित हो जाती है।