Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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सूक्ति-सुधा]
[२३ (२) गुरु आदि पूजनीय पुरुषो की सेवा-भक्ति करने से पैदा होने वाली बुद्धि वैनयिकी है।
(३) अभ्यास करते करते और कार्य करते करते प्राप्त होनेवाली बुद्धि कार्मिकी है।
(४) ज्यों ज्यो आयु के वढने पर संसार के अनुभव से प्राप्त होने वाली बुद्धि पारिणामिकी वृद्धि है।
जिणोजाणा केवली।
द०, ४, २२ टीका-राग और द्वेष पर, आत्यन्तिक विजय प्राप्त करने वाले जिन-प्रभु, केवल ज्ञानी ही सम्पूर्ण लोक और अलोक को देख सकते है । ऐसे जिन देव ही हमारे आदर्श है ।
(१०) ना दंसणिस्त नाणं।
उ०, २८, ३० टीका-जिस आत्मा को सम्यक् दर्शन यानी सम्यक्त्व प्राप्त नहीं हआ है, उसका ज्ञान भी सम्यक् ज्ञान नहीं कहा जा सकता है, वह ज्ञान तो मिथ्या ज्ञान ही है ।
(११) नाणेण य मुणी होइ, तवेण होइ तावलो।
- उ., २५, ३२ . टीका-जो सम्यक् ज्ञान से युक्त होता है, वही मुनि है। और जो तप-सयम से युक्त है, वही तपस्वी है । गुणों के अनुसार ही पद की शोभा है । गुणो के अभाव में पद धारण करना विडम्बना मात्र हैं।